श्री हनुमान जी को सिंदूर चढ़ाने का रहस्य : भगवान श्री हनुमान जी की मूर्ति में लोग सिंदूर का लेपन करते हैं। यह बहुत ही फलदायक माना गया है । सिंदूर लेपन के बारे में कई दंत कथा प्रचलित हैं।
श्री हनुमान जी को सिंदूर चढ़ाने का पहली दंत कथा
एक बार की बात है- माँ सीता अपनी माँग को सिंदूर से सजा रही थीं। उसी समय श्री हनुमान जी वहाँ पहुँचे।
यह दृश्य देखकर एक जिज्ञासु बालक की तरह, भगवान महावीर जी ने माँ सीता से पूछा, “हे माँ ! आप ने अपनी माँग में सिंदूर क्यों लगाया हुआ है?”
माँ सीता हँसी और उत्तर दिया, “ पुत्र हनुमान, इससे तुम्हारे स्वामी की आयु बढ़ती है।
सिंदूर सौभाग्यवती नारियों का एक सुंदर साज़ भी है। सिंदूर से स्वामी की आयु बढ़ेगी। ऐसा सोचकर प्रभू हनुमान जी ने माँ से सिंदूर माँगा और अपने पूरे शरीर पर सिंदूर पोत लिया और उसी अवस्था में भगवान श्री राम चंद्र जी के पास जा पहुँचे।
उन्हें सिंदूर में पुता देखकर भगवान श्रीरामचंद्र जी ने हँसते हुए पूछा, “महावीर हनुमान, यह क्या किया आपने?”
इस पर श्री हनुमान जी ने प्रेम अश्रु बहाते हुए कहा, “ यह मेरी माँ सीता जी ने कहा कि ऐसा करने से आपकी आयु बढ़ेगी।” ऐसा सुनते ही भगवान श्री राम चंद्र ने गदगद होकर हनुमान जी को अपने गले से लगा दिया और दरबारियों ने जय श्रीराम व जय श्री हनुमान नाम के नारे लगाए।
श्री हनुमान जी को सिंदूर चढ़ाने का दूसरी दंत कथा
एक दूसरी कहानी बताता हूँ। कहा जाता है कि अयोध्या में राम का राज्याभिषेक हो चुका था । भगवान राम ने अपने सहयोगी दलों को कुछ न कुछ सुंदर उपहार दिए और माँ सीता ने अपनी बहुमूल्य मणियों की माला हनुमान जी को दे दी। लेकिन
हनुमानजी ने उसकी एक एक मणि तोड़कर कुछ देखते हुए, उसे फेंक दिया। इस रहस्य को भगवान राम समझ गए।
फिर भी भगवान श्रीराम ने, लोगों के ज्ञान के लिए महावीर हनुमान जी को पूछा, “ हनुमानजी, आप क्या कर रहे हैं ?”
इसके साथ ही वशिष्ठ और अन्य उपस्थित लोगों ने कहा महावीर की ने कहा – इस प्रकार माँ सीता जी के उपहार को तोड़कर फेकना उनका अपमान है ।
इस पर महावीर हनुमान जी ने कहा, “मैं इन मणियों की माला में भगवान का प्रतिबिम्ब देखना चाहता हूँ।
यदि वह हमें दिखाई नहीं पड़ता वह इस माला को मैं कदापि अपने गले में या वक्षस्थल पर धारण नहीं कर सकता।”
यह सुन कर मुनि वशिष्ठ जी ने पूछा, “महावीर क्या आप अपने गले में या वक्षस्थल में श्री राम जी को दिखा सकते हैं?”
इस पर श्री हनुमान जी ने उत्तर दिया, “उसमें न केवल भगवान श्री राम हैं बल्कि उसमें माँ सीता जी भी पूर्ण ब्रह्मांड के साथ विराजमान हैं।”
ऐसा कहकर, राम-भक्त हनुमान जी ने अपना वक्षस्थल विदीर्ण (चीर दिया) कर दिया और उनके वक्षस्थल अर्थांत छाती पर वहां उपस्थित सभी लोग भगवान श्री राम और माँ जानकी को देखकर अचंभित हो गए।लोगों ने श्री हनुमान जी की भूरी भूरी प्रशंसा की।
माँ सीता में अपनी माँग में सिन्दूर निकाल कर उनके वक्षस्थल के उस घाव पर लगा दिया जिससे वह घाव तुरंत ही भर गया।
श्री हनुमान जी को सिंदूर चढ़ाने का तीसरी दंत कथा
एक तीसरी दंत कथा है एक दिन अंतपुर में जाते समय, भगवान श्रीराम ने श्री हनुमान जी अंतपुर में जाने से रोका। जिसे देखकर भगवान ने प्रेम से कहा, “तुम वहाँ जाने के अधिकारी नहीं हो।”
भगवान श्री रामजी माँ सीता जी पर दृष्टि डालकर बोले और सीता जी की माँग की ओर इशारा करते हुए हनुमान जी को बोले, “इसी सिन्दूर के कारण ये इस अंतपुर की अधिकारिणी है।”
दूसरे दिन भगवान श्री हनुमान जी सीता माँ की सिन्दूर-दानी से सिन्दूर लेकर अपने पूरे शरीर पर सिंदूर लगाकर वहाँ खड़े हो गए।
इस पर भगवान राम ने पूछा, “कहिए पवनसुत, ऐसा विशेष रूप क्यों धारण किया है।”
श्री हनुमान जी ने उत्तर दिया, “भगवान, क्या मैं भी अब अंतपुर में आपके साथ जाने का अधिकारी नहीं हूँ।”
इस पर भगवान श्री राम हँसने लगे और हनुमानजी को गले लगा दिया और बोले, “जो कलियुग में श्री हनुमानजी को सिंदूर लगायेगा, वह समस्त सुखों को भोगता हुआ अंत में मेरे धाम को प्राप्त करेगा।”
आशा करता हूँ, यह लेख आपको ईश्वर सद्गति की ओर लेकर जायेगा और मेरा छोटा सा प्रयास अपना असर दिखायेगा ।
जय हनुमान !
आपका अपना,
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