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Kamakhya Chalisa – कामाख्या चालीसा


Ashwin Navratri 2024 : पिछले नवरात्री २०२३ में मैंने नवरात्री पर्व पर सिद्ध कुंजिका स्तोत्र साधना का विस्तृत वर्णन किया था । पर यह साधना पद्धति और दुर्गा उपासना श्रम साध्य है अंत: आज के समय की मर्यादा की देखकर इस नवरात्री २०२४ को माँ कामाख्या चालीसा की सरल और प्रभावशाली विधान प्रस्तुस्त कर रहा हु  ।

कामाख्या चालीसा का पाठ नवरात्रि के पावन अवसर पर विशेष महत्व रखता है। यह चालीसा देवी कामाख्या की स्तुति में रचित एक अद्भुत स्तोत्र है, जो भक्तों को आध्यात्मिक शांति और मानसिक बल प्रदान करता है।

 

Kamakhya Chalisa

Kamakhya Chalisa

कामाख्या चालीसा का लाभ Kamakhya Chalisa Ke Labh

नवरात्रि के दौरान, जब हम देवी की आराधना करते हैं, तो कामाख्या चालीसा का नियमित पाठ हमारे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।

इस पवित्र ग्रंथ का उच्चारण मन को शुद्ध करता है और व्यक्ति को आत्मिक शक्ति से भर देता है।

कामाख्या चालीसा के पाठ से हमें कई लाभ प्राप्त होते हैं। यह न केवल हमारी आंतरिक शक्तियों को जागृत करता है बल्कि हमारे चारों ओर एक सुरक्षात्मक कवच भी बनाता है, जो हमें नकारात्मक शक्तियों से बचाता है।

इसके अलावा, यह भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करने में सहायक होता है और जीवन में सुख-समृद्धि लाने का मार्ग प्रशस्त करता है।

इसलिए, नवरात्रि जैसे शुभ अवसर पर कामाख्या चालीसा का पाठ अवश्य करना चाहिए ताकि हम देवी की कृपा प्राप्त कर सकें और अपने जीवन को सुखमय बना सकें।

Kamakhya Chalisa

Kamakhya Chalisa

नवरात्रि के दौरान कामाख्या चालीसा का पाठ कैसे करें Kamakhya Chalisa Ka Path Kaise Kare

 

नवरात्रि का पर्व देवी की उपासना और साधना का विशेष समय होता है। इस दौरान कामाख्या चालीसा का पाठ करना अत्यंत फलदायी माना जाता है।

यह चालीसा मां कामाख्या की महिमा और शक्ति का वर्णन करती है, जो भक्तों के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और आशीर्वाद लाती है।

कामाख्या चालीसा के पाठ से पहले, एक स्वच्छ स्थान पर आसन लगाएं और मां की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक जलाएं। इसके बाद, कुछ शांत क्षणों के लिए ध्यान लगाएं ताकि मन एकाग्र हो सके। अब धीरे-धीरे कामाख्या चालीसा का पाठ आरंभ करें।

पाठ करते समय, हर शब्द को भावपूर्ण तरीके से उच्चारित करें और मां से अपनी प्रार्थनाओं को साझा करें। यह महत्वपूर्ण है कि आप पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ इस प्रक्रिया को अपनाएं।

यदि संभव हो तो नवरात्रि के नौ दिनों तक प्रतिदिन इसका पाठ करें, जिससे आपको मानसिक शांति और आध्यात्मिक बल प्राप्त होगा।

कामाख्या चालीसा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि आत्मा की गहराई से देवी से जुड़ने का माध्यम भी है। इसे नियमित रूप से करने पर आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आएंगे और सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्ति मिलेगी।

पहले गणेश स्मरण , फिर शिव स्मरण करे फिर कामाख्या चालीसा का ५ या ११ पाठ पुरे नौ दिन करे  । पाठ के अंत में भैरव जी का भी स्मरण करे , उनके मंत्र की १ माला जाप करे यथा – ॐ भैरवाय नमः ॥

॥ दोहा ॥

सुमिरन कामाख्या करुँ, सकल सिद्धि की खानि ।
होइ प्रसन्न सत करहु माँ, जो मैं कहौं बखानि ॥

कामाख्या चालीसा Kamakhya Chalisa


जै जै कामाख्या महारानी । दात्री सब सुख सिद्धि भवानी ॥
कामरुप है वास तुम्हारो । जहँ ते मन नहिं टरत है टारो ॥

ऊँचे गिरि पर करहुँ निवासा । पुरवहु सदा भगत मन आसा ।
ऋद्धि सिद्धि तुरतै मिलि जाई । जो जन ध्यान धरै मनलाई ॥
जो देवी का दर्शन चाहे । हदय बीच याही अवगाहे ॥
प्रेम सहित पंडित बुलवावे । शुभ मुहूर्त निश्चित विचारवे ॥

अपने गुरु से आज्ञा लेकर । यात्रा विधान करे निश्चय धर ।
पूजन गौरि गणेश करावे । नान्दीमुख भी श्राद्ध जिमावे ॥
शुक्र को बाँयें व पाछे कर । गुरु अरु शुक्र उचित रहने पर ॥
जब सब ग्रह होवें अनुकूला । गुरु पितु मातु आदि सब हूला ॥

नौ ब्राह्मण बुलवाय जिमावे । आशीर्वाद जब उनसे पावे ॥
सबहिं प्रकार शकुन शुभ होई । यात्रा तबहिं करे सुख होई ॥
जो चह सिद्धि करन कछु भाई । मंत्र लेइ देवी कहँ जाई ॥
आदर पूर्वक गुरु बुलावे । मन्त्र लेन हित दिन ठहरावे ॥

शुभ मुहूर्त में दीक्षा लेवे । प्रसन्न होई दक्षिणा देवै ॥
ॐ का नमः करे उच्चारण । मातृका न्यास करे सिर धारण ॥
षडङ्ग न्यास करे सो भाई । माँ कामाक्षा धर उर लाई
जिससे होई प्रसन्न भवानी । मन चाहत वर देवे आनी ॥

जबहिं भगत दीक्षित होइ जाई । दान देय ऋत्विज कहँ जाई ॥
विप्रबंधु भोजन करवावे । विप्र नारि कन्या जिमवावे ॥
दीन अनाथ दरिद्र बुलावे । धन की कृपणता नहीं दिखावे ॥
एहि विधि समझ कृतारथ होवे । गुरु मन्त्र नित जप कर सोवे ॥

देवी चरण का बने पुजारी । एहि ते धरम न है कोई भारी ॥
सकल ऋद्धि – सिद्धि मिल जावे । जो देवी का ध्यान लगावे ॥
तू ही दुर्गा तू ही काली । माँग में सोहे मातु के लाली ॥
वाक् सरस्वती विद्या गौरी । मातु के सोहैं सिर पर मौरी ॥

क्षुधा, दुरत्यया, निद्रा तृष्णा । तन का रंग है मातु का कृष्णा ।
कामधेनु सुभगा और सुन्दरी । मातु अँगुलिया में है मुंदरी ॥
कालरात्रि वेदगर्भा धीश्वरि । कंठमाल माता ने ले धरि ॥
तृषा सती एक वीरा अक्षरा । देह तजी जानु रही नश्वरा ॥

स्वरा महा श्री चण्डी । मातु न जाना जो रहे पाखण्डी ॥
महामारी भारती आर्या । शिवजी की ओ रहीं भार्या ॥
पद्मा, कमला, लक्ष्मी, शिवा । तेज मातु तन जैसे दिवा ॥
उमा, जयी, ब्राह्मी भाषा । पुर हिं भगतन की अभिलाषा ॥

रजस्वला जब रुप दिखावे । देवता सकल पर्वतहिं जावें ॥
रुप गौरि धरि करहिं निवासा । जब लग होइ न तेज प्रकाशा ॥
एहि ते सिद्ध पीठ कहलाई । जउन चहै जन सो होई जाई ॥
जो जन यह चालीसा गावे । सब सुख भोग देवि पद पावे ॥
होहिं प्रसन्न महेश भवानी । कृपा करहु निज – जन असवानी ॥

॥ दोहा ॥

कर्हे गोपाल सुमिर मन, कामाख्या सुख खानि ।
जग हित माँ प्रगटत भई, सके न कोऊ खानि ॥

माँ कामाख्या देवी का आपके परिवार पर आशीर्वाद रहे ।

माँ कामाख्या दर्शन अभिलाषी ,
नीरव हिंगु