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Shri Hanuman Stuti se Darshan Aur Kripa Prapti

आज के लेख मैंने श्री गीताप्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “हनुमान अंक” पर पुष्ट ४९० पर एक अनुभव सिद्ध प्रयोग श्री हनुमान जी के कृपा प्राप्ति के लिए दिया गया है ।

मै वही लेख ज्यो का त्यों यहाँ पर श्री हनुमान कृपा प्राप्ति के लिए और सर्व कार्य सिद्धि के लिए पाठको के हिट के लिए प्रकाशित कर रहा हु ।

हमारे कुलदेवता श्रीहनुमानजीकी उपासनासे सम्बन्धित एक अनुभव सिद्ध अचूक प्रयोग लेख रूप में लिपिबद्ध किया जा रहा है। आशा है, सहृदय आस्तिक पाठकगण श्रद्धा-विश्वासपूर्वक इससे अवश्य लाभ उठायेंगे।

प्रस्तुत प्रयोग मेरी पूजनीया स्व० दादी श्रीजी को लगभग २५ वर्ष पूर्व मेरी जन्मभूमि रामगढ़ (शेखावाटी), राजस्थान में एक सिद्ध महात्माजी से आशीर्वाद स्वरूप प्राप्त हुआ था, जिसका प्रत्यक्ष चमत्कार अचूक रामवाणकी तरह मैं आज तक देखता आ रहा हूँ। कई बार मेरे परिवार के तथा कई अन्य व्यक्तियों ने इससे लाभ उठाया है।

Hanuman Stuti

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Shri Hanuman Stuti ke Fayde

किसी भी परोपकार-भावना या उचित एवं योग्य स्वकार्यकी सिद्धिके लिये इसका प्रयोग किया जा सकता है। किसी भी मास में शुक्ल पक्ष के मंगलवार को इसका श्रीगणेश कर सकते हैं, परंतु उस दिन रिक्ता (४ ।९ । १४) तिथि एवं प्रयोग-कर्ता की राशि से ४ थे,८ वें या १२ वें चन्द्रमा का होना निषिद्ध है।

Shri Hanuman Stuti Kaise Kare ? श्री हनुमान जी स्तुति कैसे करे ? 

जननाशौच या मरणाशौच में भी इसका प्रारम्भ नहीं करना चाहिये । यदि प्रयोग-कालमें ऐसा कोई संयोग आ ही जाय तो किसी कर्मनिष्ठ कुलीन ब्राह्मण के द्वारा इसे पूर्ण कराना चाहिये, बीचमें छोड़ना उचित नहीं है ।

पुरुषों के अतिरिक्त ऐसी स्त्रियाँ भी इसका अनुष्ठान कर सकती हैं, जिनका प्रौढावस्था के बाद प्राकृतिक रूप से मासिक धर्म सदा के लिये बंद हो चुका हो। प्रयोग के समय क्षौरादि कर्म का त्याग एवं सात्त्विक आहारके साथ ब्रह्मचर्य का पालन करना अनिवार्य है।

एक ही समय भोजन किया जाय तो अति उत्तम है,पर यह अनिवार्य नहीं है; परंतु दो बार से अधिक अन्न प्रयोग-प्रारम्भ के लिये शुक्ल पक्ष के जिस मंगलवार का निश्चय किया जाय, उसके पहले दिन सोमवार को सवा पाव अच्छा गुड़, एक छटाँक भूने हुए अच्छे चने और सवा पाव गाय का शुद्ध घी संग्रह कर ले।

गुड़ के छोटे-छोटे इक्कीस टुकड़े कर ले, शेष वैसे ही रहने दे। स्वच्छ रूईकी २२ फूल-बत्तियाँ बनाकर घी में भिगो दे। तीनों वस्तुएँ अर्थात् गुड़, चने और बत्ती सहित घी अलग-अलग तीन स्वच्छ एवं शुद्ध पात्रों में रखकर घर के किसी एक स्वच्छ ऊँचे स्थान या आलमारी में ढककर रख दे, जहाँ बच्चों के हाथ न पहुँच सकें।

उनके पास ही एक दियासलाई और एक अन्य छोटा पात्र-छन्नी आदि, जिसमें प्रतिदिन उपर्युक्त वस्तुएँ ले जायी जा सकें, भी रख दे, जिससे प्रतिदिन इधर-उधर पात्रकी खोज न करनी पड़े। बस, सामग्री तैयार है।

शेष रहा केवल एक स्वच्छ पवित्र श्रीहनुमानजी का मन्दिर, जो गाँव या शहर के कोलाहल से दूर जितने भी निर्जन एवं एकान्त स्थानमें हो, उतना ही अच्छा है; अन्यथा अपने निवास स्थानसे कम-से-कम सवा-डेढ़ फर्लांग दूर होना तो अनिवार्य ही है।

Hanuman Stuti

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Shri Hanuman Stuti Kab Kare ? श्री हनुमान जी की स्तुति कब करे ?

जिस मंगलवार से प्रयोग आरम्भ करना हो, उस दिन हो सके तो ब्राह्म-मुहूर्त में अन्यथा सूर्योदय के पहले अवश्य उठ जाना चाहिये।

फिर शौचादिसे निवृत्त हो स्नान कर कपड़े पहन ललाटपर रोली – चन्दन आदि लगाकर सबसे पहले वहाँ जाय जहाँ तीनों पात्रों में गुड़, चने और घी-बत्ती रखी है।

वहाँ पहलेसे ही रखे छन्नी आदि खाली पात्रमें एक गुड़की डली, ११ चने, एक घृत- बत्ती और दियासलाई लेकर पवित्र धुली हुई रूमाल आदि किसी स्वच्छ पवित्र वस्त्र से उसे ढक ले ।

वहाँ से लौटते समय मन्दिरमें श्रीहनुमानजी की मूर्ति के सम्मुख पहुँचने तक न तो पीछे न दायें-बायें ही घूमकर देखे और न छन्नी उठाने के बाद घर में, रास्ते में या मन्दिर में किसी से एक शब्द भी बोले, चाहे कोई कितने भी आवश्यक कार्य के लिये आवाज क्यों न देता हो। इस प्रकार पूर्णरूप से एकदम मौन रहे।

बिना जूता-चप्पल पहने श्रीहनुमानजीके सम्मुख पहुँचकर बिना इधर-उधर देखे मौन धारण किये हुए ही पहले घी-बत्ती जलाये, फिर ११ चने और १ गुड़की डली श्रीहनुमानजी  के सामने रखकर साष्टाङ्ग प्रणाम कर हाथ जोड़ पूर्व संकल्पित अपनी मनोकामना की सिद्धि के लिये मन-ही-मन श्रद्धा, विश्वास, भक्ति एवं प्रेमपूर्वक उनसे प्रार्थना करे।

फिर यदि कोई अन्य प्रार्थना, स्तुति, श्रीहनुमान चालीसा आदि का पाठ करना चाहे तो मौन ही रहकर करे।

Hanuman Stuti

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घर की ओर जाने के लिये मूर्ति के सामने से हटने के बाद जब तक अपने घर पहुँचकर वह खाली पात्र निश्चित स्थान पर न रख दे, तब तक पीछे या दायें-बायें घूमकर न तो देखे और न किसी से एक शब्द भी बोले, मौनी ही बना रहे।

फिर छन्नी रखकर सात बार ‘राम-राम’ कहकर मौन भङ्ग करे। इसी क्रम से २१ दिनों तक लगातार एक-सा प्रयोग करता रहे।

रात्रि में सोते समय श्री हनुमानचालीसा का ११ पाठ करके अपनी मनोकामना सिद्धि के लिये प्रार्थना करना अनिवार्य है।

बाईसवें दिन मंगलवार को नित्यकर्म से निवृत्त हो सवा सेर आटेका एक रोट बनाकर गोबर की अग्नि में पका ले, यदि असुविधा हो तो पाव-पाव की पाँच रोटी बनाकर उनमें आवश्यकतानुसार गाय का शुद्ध घी और अच्छा गुड़ मिलाकर उनका चूरमा बना ले।

२१ डलियोंके बाद जो गुड़ बचा हो, उसे चूरमेमें मिला दे। फिर चूरमेको थाली में रखकर बचे हुए सारे चने तथा शेष घी सहित २२वीं अन्तिम बत्ती लेकर प्रतिदिन की तरह ही मौनपूर्वक बिना पीछे या दायें-बायें देखे मन्दिर में जाय और बत्ती जलाकर श्रीहनुमानजी को चने एवं चूरमे का भोग लगाकर उसी प्रकार घर को वापस आये और घर में प्रवेश करने के बाद ही मौन भङ्ग करे।

प्रयोगकर्ता उस दिन दोनों समय केवल उसी चूरमे का भोजन करे। शेष चूरमे को प्रसाद रूप में बाँट दे।ऐसा करने से श्रीहनुमानजीकी कृपा से मनोरथ अवश्य सिद्ध होता है। किसी कारणवश प्रयोग में भूल भी हो जाय तो निराश न हो, उसे फिर करे।

श्रीहनुमानजी श्रद्धालु, विश्वासी, आस्तिक, सच्चे साधक की मनोकामना अवश्य पूर्ण करते हैं, यह परीक्षित अनुभव सिद्ध अचूक प्रयोग है।

श्री हनुमान जी कृपा अभिलाषी,
नीरव हींगु