Ek Mukhi Rudraksha – In my last blog on Rudraksha, I have discussed the method of wearing Rudraksha and given a brief about Rudraksha. In today’s blog, I will discuss Ek Mukhi Rudraksha, although there are different types of Rudrakshas starting from one to 14 Rudraksha (faces).
14 Mukhi Rudraksha or Chaudah Mukhi Rudraksha was considered the best. 21 Mukhi Rudraksha are also only available in India. In this article, I will be explaining the method of describing and wearing Ek Mukhi Rudraksha, its Mantra, Viniyoga, Dhyan Mantra and Nyas Mantra.
Ek Mukhi Rudraksha in Tantra
In the Tantric Field, it is believed that only Maha Bhogi (Lakhpati/Millionaire/Billionaire Wealthy People) who have earned wealth with strong values, ethics and honesty or Mahayogi Ji can hold Ek Mukhi Rudraksha.
Ek Mukhi Rudraksha is considered the best and rare to find in this world, though many online sellers and shops in India, Nepal and many parts of the Asian region claim to have original Ek Mukhi rudraksha. The person who wears Ek-Mukhi Rudraksha will not lack anything in his life as the Goddess of Wealth, Maa Mahalakshmi resides in her house permanently.
How to Identify Ek Mukhi Rudraksha Original?
By wearing Ek-Mukhi Rudraksha, the person attains happiness, immense peace, attainment of spontaneous wealth, cure of disease, gain hypnotic personality and the ability to achieve complete victory over its enemy.
Whatever desire such a person has, it is complete within a stipulated time period. Many tantric and scholars believe that wearing Ek Mukhi Rudraksha cures chronic blood pressure, especially for Asthma.
There is a specific mantra to recite and energise each Rudraksha. To achieve success and abundance, this Ek-Mukhi Rudraksha is said to be the best Rudraksha to acquire wealth.
Ek-Mukhi Rudraksha is considered to be very rare in the world. A person wearing Rudraksha, all the desires are fulfilled and success is achieved.
The scriptures say that Rudraksha is considered to be superior in removing the dosha of brahmacharya (the sin of killing living beings.
Ek Mukhi Rudraksha Mantra
Aem Hum Aum Aeim Om
Viniyog – Asya Shree Shiva Mantrashya Praashad Rishi Panthi Chand Shivo Devta Hum Karo Beejam Om Shakti Mama Chatur Varga Siddharthe Rudraksha Dhaaranarthe Jape Viniyog
Nyasa – Vaamdev Rishiye Namah Shirshi , Panthi Chandse Namo Mukhe, Ru – Aeim Aeim Namah Hyadi Hum Beejaay Namo Gruhe Om Shaktye Namah Paadyo Om Om Haam Angusthabhyam Namaha , Om Aeim Hrim Tarjanibhyam Swahaa, Om Haam Ham Madhyabhyam Voshad Om Om Hrim Kar Tal Kar pusthabhyam Phat Iti Kar Nyasa
Ashtanga Nyasa – Om-Om ham Hydayaay Namaha, Om Aeim Hrim Shirshe Swahaa, Om Hrim Hum Shikhaaye Voshad, Om Om Ham Kawachaay Hum, Om Aeim Haam Netra-Trayaay Voshad Om-Om Ham Astraay Phat.
Dhyan Mantra – Mukt Peen Payoda Moukti ka ja pa vaarne mukhe: Panchabhi:. Stra Yakshe Raji Tamish Mindu Mukutam Purnendu Kotiprabham. Shool tank krupaan vraj dahana nagendra ghanta shuskan. Hastva jee sha va bhayam varaasha cha ghatam tejo jyalam chintaye॥
Further, Tantra Text says that is Ek Mukhi Rudraksha should be wash and perform Pancha-Upchar Poojan, then one need to recite 100 times Mantra Jaap of Shiva, Later S/he should perform Pranayam and then wore the Rudraksha to get Benefits.
Evam dhyatva manasopachare sampujire kuryaaj jaap sahastrakam Tadant ramaa bhi mukhya samipyam ghatopari tamrapatram nidhaaya tatra rudraksham shipwa pankthi prana yaam kritva. paschant, vaame jal paatram Ghritva Thatra, Savya Hastham Ghritwa Dakshina Paanina Sahasra Jaap Kuryaant. Poona Styopari Jalam Kshepat Rudraksham Dhaar Yet Aevam Sarvatra Vidhi Genya.
Let me know, how did you find this blog on “Ek Mukhi Rudraksha” ?
Regards,
Nirav Hiingu
आज के ब्लॉग में हम रुद्राक्ष धारण करने की विधि स्पष्ट कर रहे हैं और साथ में एक से लेकर 14 मुखी तक रुद्राक्ष का वर्णन करें ।
मूल रूप से 14 मुखी रुद्राक्ष सर्वश्रेष्ठ माने गए हैं और भारत में 21 मुखी रुद्राक्ष प्राप्त होते हैं. मैं आज के डेट में एक मुखी से लेकर 21 मुखी रुद्राक्षओं का वर्णन व धारण करने की विधि स्पष्ट कर रहा हूं।
एक मुखी रुद्राक्ष और तंत्र
तांत्रिक क्षेत्र में महा भोगी (लखपति) या महायोगी जी एक मुखी रुद्राक्ष को धारण कर सकता है।
एक मुखी रुद्राक्ष अत्यंत ही सर्वश्रेष्ठ माना गया है. जो एक मुखी रुद्राक्ष धारण करता है उसको अपने जीवन में किसी भी वस्तु का अभाव नहीं रहता. और महालक्ष्मी उसके घर में हमेशा स्थाई रूप से निवास करती है।
एक मुखी रुद्राक्ष की पहचान
एक मुखी रुद्राक्ष की पहचान यह है कि यदि एक कप पानी में डाल दिया जाए तो 20 से 25 मिनट अपने आप बोलने लग जाता है।
एक मुखी रुद्राक्ष धारण करने से मनुष्य के मन मस्तिष्क में प्रसन्नता, अपार शांति, अनायास धन की प्राप्ति, रोग मुक्ति, सम्मानित व्यक्तित्व और अपने शत्रु के ऊपर पूर्ण विजय प्राप्त करने की क्षमता प्राप्त कर लेता है।
ऐसे व्यक्ति को जो भी मनोकामना होती है वह अवश्य पूर्ण होती है. कुछ तांत्रिक और विद्वानों का मानना है कि एक मुखी रुद्राक्ष धारण करने से पुराना दमा ठीक हो जाता है और यह उसका एक रामबाण इलाज है।
प्रत्येक रुद्राक्ष को सिद्ध करने का एक विशिष्ट मंत्र होता है. अद्वितीय लक्ष्मी प्राप्ति के लिए एक मुखी रुद्राक्ष श्रेष्ठ जाता है।
एक मुखी रुद्राक्ष यह विश्व में अत्यंत ही दुर्लभ माना गया है. ऐसे व्यक्ति के जीवन में सारी मनोकामनाएं पूरी होती है और वह जिस क्षेत्र में अपना हाथ डालता है उसमें सफलता ही प्राप्त होती है।
शास्त्रों का यह कहना है कि यह रुद्राक्ष ब्रह्महत्या के दोष को दूर करने में भी श्रेष्ठ माना गया है।
एक मुखी रुद्राक्ष मंत्र
एं हं औं ऎं ओम
विनियोग – अस्य श्री शिव मंत्रस्य प्राशद ऋषि: पंक्ति चंद शिवो देवता हंकारो बीजं ॐ शक्ति मम चतुर वर्ग सिद्धयर्थे रुद्राक्ष धारणार्थे जपे विनियोग: ॥
न्यास – वामदेव ऋषिये नमः शिरषि , पंक्ति छन्दसे नमो मुखे, ॠ ऐं ऐं नमः हदि, हं बीजाय नमो गुहे ॐ शक्तये नमः पादयो:। ॐ ॐ हां अंगुष्ठाभ्याम नमः । ॐ ऐं ह्रीं तर्जनीभ्याम स्वाहा:। ॐ हां हं मध्याभ्याम वौषट ॐ ॐ ह्रीं करतल कर पुष्ठाभ्यां फट इति कर न्यास :।
अष्टांग न्यास: । ॐ ॐ हां हृदयाय नमः । ॐ ऐं ह्रीं शिरसे स्वाहा । ॐ ह्रीं हूँ शिखाये वौषट। ॐ ॐ हं कवचाय हूँ । ॐ ऐं हां नेत्रत्रयाय वौषट ॐ ॐ हं अस्त्राय फट ॥
ध्यान मंत्र – मुक्त पीन पयोद मौक्ति क ज पा वणे मुखे: पञ्चभी : । स्त्र यक्षे राजी तमिश मिन्दू मुकुटम पूर्णेनदू कोटिप्रभम । शूल टंक कृपाण व्रज दहना नागेंद्र घंटा शुकं। हस्ता ज़े षव भयं वराश च घतम तेजो ज्यलं चिन्तये ॥
एवम ध्यात्वा मानसोपचारे सम्पूजीरे कुर्याज जप सहस्त्रकम तदन्त रमा भी मुख्य सामीप्यम घटोपरी ताम्रपात्रम निधाय तत्र रुद्राक्षम शिप्त्वा पंक्ति प्राणा याम कृत्वा । पश्चांत वामे जल पात्रम घृत्वा तत्र तले सव्य हस्थम घृत्वा दक्षिण पाणिना सहस्त्र जपं कुर्यान्त । पून स्त स्योपरी जलम क्षिपेत् रुद्राक्षम धार येत एवम सर्वत्र विधि ज्ञेय ॥
आज का यह लेख – एक मुखी रुद्राक्ष आपको कैसा लगा ?
शिवदर्शन-अभिलाषी,
नीरव हिंगु
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