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The Importance of Panchamuki Hanuman ji

Panchamukhi Hanuman ji is regarded as the embodiment of the five divine aspects of Lord Hanuman

Each face of Panchamukhi Hanuman ji represents a unique trait that people need to overcome the obstacles and succeed in life. 

Hanuman’s central face personifies devotion and submission to a higher power necessary to overcome the ego and connect with God.

The  face of Narasimha Panchamukhi Hanuman ji represents the boldness and courage needed to overcome life’s fears and obstacles. 

The face of Garuda Panchamukhi Hanuman ji represents the speed and mobility needed to act quickly and decisively in a crisis situation. 

The  face of  Varaha  Panchamukhi Hanuman ji represents strength and protection which is important in overcoming adversity and protecting from evil forces. 

Finally, the  face of Hayagriva Panchamukhi Hanuman ji personifies knowledge and wisdom necessary for spiritual growth and enlightenment.  Panchamukhi Hanuman is believed to have the ability to protect  devotees from negative energies and evil forces. 

He is also considered  a powerful deity for success in his endeavors including business, education and career.

How  Panchamukhi Hanuman ji Kavach Can Help  Human Suffering

Recitation of the Panchamukhi Hanuman ji Kavach can alleviate human suffering in many ways. Reciting the Panchamukhi Hanuman Kavach has the following benefits: 

Reciting the Panchamukhi Hanuman ji Kavach can bring many benefits to those who seek protection, strength, wisdom and success in life.

Here are five benefits of reciting the  Panchamukhi Hanuman Ji Kavach. 

  1. Protection from Negative Energy: The Panchamukhi Hanuman Ji Kavach is believed to have the ability to protect people from negative energies and evil forces. Regular repetition of this stotra creates a protective shield around a person, protecting him from danger.
     
  2. Overcoming obstacles: The Panchamukhi Hanuman ji Kavach is also said to help people overcome obstacles and problems in life. Panchamukhi Hanuman Kavach gives a person strength, courage and boldness to face  and overcome difficulties.
  3. Spiritual growth: Reciting the Panchamukhi Hanuman ji Kavach can also aid in spiritual growth and enlightenment. The  face of Hayagriva Panchamukhi Hanuman symbolizes the knowledge and wisdom that can be gained by repeating this stotra regularly.
  4. Success in hard work: The Panchamukhi Hanuman ji Kavach is believed to bring success in various endeavors including business, education and career. The  face of Garuda Panchamukhi Hanuman represents speed and mobility that helps people achieve their goals quickly and efficiently.  
  1. Inner peace and harmony: Reciting the Panchamukhi Hanuman ji Kavach can  bring inner peace and harmony to people. Hanuman’s central face  represents devotion and submission to a higher power, helping people connect with the divine and experience  inner peace and contentment. 

In conclusion,  regular chanting of the Panchmukhi Hanuman ji Kavach can bring many benefits to those seeking protection, strength, wisdom and success in life. 

It can also help in spiritual growth and enlightenment as well as bring inner peace and harmony to people.

I hereby give you Panchamukhi Hanuman ji Kavach in Hindi for my readers.

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Regards,

Nirav Hiingu

अथ पंचमुखि हनुमान कवच Panchamukhi Hanuman Kavach

अस्य श्री पंच मुखि हनुमान कवच स्तोत्र मन्त्रस्य ब्रह्मा गायत्री छंद । श्री हनुमान देवता रां बीजम् मं शक्तिः । चन्द्र इति कीलकम् । ॐ रौं कवचाय हुम् । हौं अस्त्राय फट्। 

ईश्वर उवाच ॥ 

अथ ध्यानं प्रवक्ष्यामि श्रृणु सर्वाङ्ग सन्दरम् ॥ यत्कृत देव देवेशि ध्यानम् हनुमत प्रियम् ॥ १ ॥

पंचवक्त्र महाभीमं कपियूथ समन्वितम् || बाहुभिर्दशभियुतां सर्व कामार्थ सिद्धिदम् ||२|| 

पूर्व तु वानर वक्त्र कोहि सूर्य सम प्रभम् || दंष्ट्रा कराल वदनं भृकुटी कुटि लेक्षणम् ॥३

अस्यैव दक्षिणं वक्त्रं नारसिंहं महाद्-भुतम् ॥ अत्युग्रतेजोव पुवं भीषण भयनाशनम् ॥ 

४॥ पश्चिमे गारुडम् (वक्त्रं) वक्रतुंड महाबलम् || सर्वनाग प्रशमनं सर्वभूतादि कृन्तनम् ॥५॥ 

उत्तरे सौकरं वक्त्र कृष्ण दीप्तनभोमयम् ॥ ६ ॥ 

उर्ध्वं हयाननं घोरं दानवांतकरं परम् । येन वक्त्रेण विप्रेन्द्र ताटकाया महाहवे ॥ ७ ॥ 

दुर्गतशरणतस्य सर्वशत्रू हरं परम् ॥ ध्यात्वा पंच मुर्ख रूद्र हनुमंत दयानिधिम् ॥८॥ 

खड्ग त्रिशूलं खट्वांगं पाशमंकुशपर्वतम् ॥ मुष्टो तु मोदको वृक्षं धारयन्तं कमंडलुम् ॥ ९ ॥

भिदिपाले ज्ञान मुद्रां दमनं मुनि पुंगव ॥ एतान्यायुधजालानि धारयन्तं भया पहम् ||१०|| 

दिव्यमाल्याम्बरं दिव्यगंधानु लेपनम् || सर्वेश्वर्यमयं देवं हनुमद् विश्वतोमुखम् ||११||

पंचास्य मच्युत मने कवि विचित्र वर्ण वक्रं शंख विभृतं कपिराजवीर्यम् ॥ 

पीताम्बरादि मुकुटैरपि शोभितांगं पिंगाक्ष मज्जनि सुतं निशं स्मरामि || १२ ||

मर्कटस्य महोत्साहं सर्वशोक विनाशनम् । शत्रू संहारकं चैतत्कवचं हापदं हरेत ||१३|| 

ॐ हरिमर्कट मर्कटाय स्वाहा ॥ १४ ॥ 

ॐ नमो भगवते पंचवदनाय पूर्व कपि मुखाय सकलशत्रू संहारणाय स्वाहा || १५ ||

ॐ नमो भगवते पंच वदनाय दक्षिण मुखाय कराल वदनाय नरसिंहाय सकल भूत प्रेत दमनाय स्वाहा ||१६|| 

ॐ नमो भगवते पंच वदनाय पश्चिम मुखाय गरुडाननाय सकल विष हराय स्वाहा || १७|| 

ॐ नमो भगवते पंचवदनाथ उतर मुखाय आदि वराहाय सकल संम्पत्कराय स्वाहा ॥१८॥

ॐ नमो भगवते पंचवदनाय उर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय सकल जन वश्य कराय स्वाहा || ११ || 

इति मूल मन्त्र: ॥

ॐ अस्य श्री पच्च मुखि हनुमत्कवच स्तोत्र मंत्रस्य

श्री राम चन्द्र ऋषि अनुष्टुप छन्द: श्री राम चन्द्रो देवता ॥

सीता इति बीजम् || हनुमानिति शक्ति: हनुमत्प्रीत्यर्थं विनियोग ।

पुन: हनुमानिति बीजम् ॥ ॐ वायुपुत्राय इति शक्तिः ।

अंजनी सुतायेति कीलकम् ॥ श्रीरामचन्द्रवर प्रसाद सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ॥ 

ॐ हं हनुमते अंगुष्ठाभ्यां नमः ।

ॐ वं वायु पुत्राय तर्जनीभ्यां नमः । 

ॐ अं अंजनीसुताय मध्यमाभ्यां नमः । 

ॐ रां रामदूताय अनामिकाभ्यां नमः ।

ॐ सं सीताशोक-निवारणाय करतल पृष्ठाभ्यां नमः । 

ॐअंजनी सुताय हृदयाय नमः । ॐ रुद्रमूर्तये शिरसे स्वाहा ।

ॐ वायु पुत्राय शिखायै वषट् ॥ ॐ अग्नि-गर्भाय शिरसे स्वाहा ।

ॐ रामदूताय नेत्र प्रयाय वौषट् ॥ ॐ पंच मुखि हनुमते अस्त्राय फट् ॥

अथ ध्यानम् – 

श्री राम दूताय आंजनेयाय वायुपुत्राय महाबलाय सीताशोक निवारणाय महाबल प्रचण्डाय लंकापुरीदहनाय फाल्गुन सखाय कोलाहल सकल ब्रह्मांड विश्वरूपाय सप्त समुद्रान् तराल संधिताय पिंगल नयनायामित विक्रमाय सूर्य बिम्ब फल सेवाधिष्ठित पराक्रमाय संजीवन्या अंग दलक्ष्मण महाकपि सैन्य प्राणदात्रे दशग्रीव विध्वंसनाय रामेष्टाय सीता सह रामचन्द्र वर प्रसादाय षट् प्रयोगागम पंचमुखि हनुमन्मन्त्र जपे विनियोग: ॥

ॐ हरिमर्कट मर्कटाय स्वाहा ||

ॐ ह्रीं हरिमर्कट मर्कटाय वं वं वं वं वं फट् स्वाहा || 

ॐ ह्रीं हरि मर्कट मर्कटाय पं पं पं फं फं फट् स्वाहा ॥ 

ॐ ह्रीं हरिमर्कट मर्कटाय खं खं खं खं खं कट् स्वाहा || 

ॐ ह्रीं हरि मर्कट मर्कटाय ठं ठं ठं ठं ठं स्तंभनाथ स्वाहा || 

ॐ ह्रीं हरि मर्कट मर्कटाय हुं हुं हुं हुं हुं आकर्षणाय सकल सम्पत्कराय पंचमुखि वीर हनुमते स्वाहा || 

उच्चाटने ॐढं ढं ढं ढं ढं कूर्ममूर्तये पंचमुखि हनुमते पर यन्त्र तंत्रो उच्चाटनाय स्वाहा ॥ 

ॐ कं खं गं घं डं. चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं मं यं रं लं वं शं षं हं क्षं स्वाहा ॥

इति दिग्बन्धः ॥ 

ॐ पूर्व कपि मुखाय पंचमुखि हनुमतें ठं ठं ठं ठं ठं सकल शत्रू संहारणाय स्वाहा ॥ 

ॐ दक्षिण मुखे पंचमुखि हनुमते करालवदनाय नरसिंहाय हां हां हां हां हां सकलभूत प्रेत दमनाय स्वाहा || स्वाहा || 

ॐ पश्चिम मुखे गरुडा सनाय पंचमुखि वीरहनुमते मं मं मं मं मं सकल विष हराय स्वाहा । 

ॐ उत्तर मुखे आदि वराहाय लं लं लं लं लं नृसिंहाय नीलकंठाय पंचमुखि हनुमते स्वाहा ||

ॐ अर्व मुखाय हयग्रीवाय रूं रुं रुं रूँ रूं रुद्रमूर्तये पंचमुखि हनुमते सकलजन वश्य कराय स्वाहा ॥

ॐ अन्जनी सुताय वायुपुत्राय महाबलाय रामेष्ट फाल्गुन सखाय सीता शोक निवारणाय लक्ष्मण प्राण रक्षकाय कपि सैन्य प्रकाशाय दशग्रीवाभिमान दहनाय श्री रामचन्द्रवर प्रसादकाय महावीर्याय प्रथम ब्रह्मांड नायकाय पंचमुखि हनुमते भूत-प्रेत पिशाच ब्रह्म राक्षस – शाकिनी – डाकिनी – अन्तरिक्ष ग्रह पर यन्त्र – परमन्त्र परतन्त्र सर्वग्रहोच्चाटनाय सकल शत्रू संहारणाय पंच मुखि हनुमद्वर प्रसादक सर्व रक्षकाय जं जं जं जं जं स्वाहा ||

इदं कवचं पठित्वा तु महा कवच पठेन्नर: । एकवारं पठेनित्यं सर्वशत्रू निवारणम् ॥१८॥

नित्यं श्राद्ध परमम द्विवारं तु पठेनित्यं पुत्र पौत्र प्रवर्धनम् ॥ त्रिवारं पठते नित्यं सर्व संपत्करं परम् ॥ १९ ॥

चतुर्वारं पठेनित्यं सर्वलोक वशीकरम् ॥ पंचवार पठे नित्यं सर्व रोग निवारणम् ॥ २० ॥

षड्वारं तु पठेनित्यं सर्वदेव वशीकरम् । सप्तवारं पठेनित्यं सर्व कामार्थ सिद्धिदम् ॥ २१ ॥

अष्टवारं पठे नित्यं सर्व सौभाग्य दायकम् । नाम नव वारं पठे नित्यं सर्वे ऐश्वर्य प्रदायकम् ॥ २२ ॥

दशवारं पठे नित्यं त्रैलोक्य ज्ञान दर्शनम् । एकदशं (रुद्रावृति) पठे-नित्यं सर्वसिद्धिं लभेन्नर (भवेदधुवम्) २३ ॥

निर्बलो रोग युताश्च महाव्याध्यादि – पीड़ितः । कवच स्मरणेनैव महाबल मवाप्नुयात् ॥ २४ ॥

इति श्री सुदर्शन संहितायां श्रीरामचन्द्र सीता प्रोतं पंचमुख हनुमत्कवचं सम्पूर्णम् ॥