कनकधारा स्तोत्र : ( Kanakdhara Stotra ) धनपति बनना बुरी बात नहीं है । सम्पन्न होना अपराध नहीं है । गृहस्थ जीवन की सुख-शांति का आधार जहाँ मधुर पारस्परिक संबंध है, वहाँ आर्थिक सम्पन्नता भी है। धन प्राप्ति के लिए कनकधारा यंत्र साधना शीघ्र फलदायक तथा विशेष प्रभावयुक्त है ।
गृहस्थ जीवन मनुष्य का श्रेष्ठतम वरदान है । गृहस्थ जीवन का आधार जहां पत्नी, पुत्र, बन्धु-बांधव है, वहीं दूसरी ओर आर्थिक पक्ष भी है । आर्थिक न्यूनता की वजह से परिवार में जो शान्ति और सुख होना चाहिए वह संभव नहीं हो पाता ।
आप भी धन प्राप्त करना चाहते हैं न ? तो फिर कनकधारा यंत्र साधना सम्पन्न कीजिए और सुख भोगिये आर्थिक अनुकूलता। जटिल विधि-विधान की आवश्यकता नहीं— बस, घर-दुकान में कनकधारा यंत्र की स्थापना कर दीजिए, नित्य प्रति कनकधारा स्तोत्र का पाठ कीजिए और देखिए इसका चमत्कारी प्रभाव ।
परन्तु जिस प्रकार से जीवन भाग रहा है, और जैसी महंगाई चारों तरफ व्याप्त है, उससे केवल मात्र अर्थोपार्जन से ही सारी समस्याओं का समाधान नहीं हो पाता ।
What is Kanakdhara Stotra in Hindi and Its Usage in Daily Life
इसके लिए श्रेष्ठ अर्थोपार्जन तथा धन संचय आवश्यक है ।लक्ष्मी प्राप्त करना या लक्ष्मी पति बनना कोई बुरा कार्य नहीं है । धन संचय करना या श्रीसम्पन्न होना अपराध नहीं है । इसके लिए हमारे पूर्वजों ने, साधु और महर्षियों ने कुछ ऐसे प्रयोग भी हमें दिये हैं, जिन्हें अपनाकर हम अल्प समय में विशेष सम्पन्न और धन संचय करने में सक्षम हो पाते हैं ।
जहां तक मेरा अनुभव है, आर्थिक सम्पन्नता एवं लक्ष्मी प्रसन्नता के लिए जितने भी मंत्र-तन्त्र प्रयोग एवं अनुष्ठान हैं, उनमें कनकधारा साधना सबसे अधिक प्रभावयुक्त, महत्वपूर्ण एवं शीघ्र फलदायक है ।
Importance of Kanakdhara Stotra in Hindi
इस कनकधारा साधना में कुछ ऐसी विशेषता है कि यह स्वयं ही अर्थोपार्जन के कुछ ऐसे नये रास्ते बताता है जिस पर चल कर साधक या गृहस्थ अल्प समय में ही अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति में सफलता प्राप्त कर लेता है ।
कनकधारा स्तोत्र ( kanakdhara stotra ) की शब्द रचना ही कुछ इस प्रकार से गुम्फित है कि एक विशेष प्रभाव उत्पन्न होता है ।
Kanakdhara Yantra and Kanakdhara Stotra Sadhana
कनकधारा यंत्र स्वतः मंत्र सिद्ध, प्राण प्रतिष्ठा युक्त होना चाहिए तभी वह फलप्रद होता है, अतः इस पर विशेष प्रयोग या विधि-विधान करने की आवश्यकता साधक को या गृहस्थ को नहीं होती । उसको घर में स्थापित करने के लिए भी कोई विशेष जटिल विधान की आवश्यकता नहीं है ।
आवश्यकता इस बात की है कि नित्य इसके सामने अगरबत्ती और दीपक जलाया जाय । यह कार्य स्वयं गृहस्वामी या स्वामिनी, पुत्र, पुत्रवधू, पुत्री या श्रेष्ठ वर्ण का कोई नौकर कर सकता है ।
कनकधारा स्तोत्र साधना के लाभ : Benefits of Kanakdhara Stotra Sadhana
१) अपने कर्ज से शीघ्र ही मुक्ति प्राप्त करता है ।
२) यदि कनकधारा यंत्र के सामने कनकधारा स्तोत्र का पाठ किया जाय तो तुरन्त अपनी दरिद्रता को दूर भगाने में समर्थ हो पाता है ।
३) यदि कनकधारा यंत्र के सामने साधक या घर का कोई व्यक्ति अथवा ब्राह्मण कनकधारा स्तोत्र करे तो अद्भुत फल प्राप्त होता है ।
४) यदि आपका व्यापार बंद हो चूका है अथवा व्यापार में मंडी छा गयी हो तब कनकधारा साधना करने से कुछ ही समय में लाभ हो जाता है ।
५) यदि नौकरी में तरक्की नहीं हो रही हो अथवा नौकरी प्राप्त करने में बाधा आ रही हो , तब भी यह साधना करने से लाभ होता है ।
६) यदि जीवन में कोई आर्थिक अवसर प्राप्त नहीं हो रहा हो, तब भी यह कनकधारा साधना करने से त्वरित लाभ होता है ।
कनकधारा स्तोत्र साधना विधान : Kanakdhara Stotra Sadhana Vidhan
१) यह कनकधारा साधना नित्य कर सकते है ।
२) प्रतिदिन स्नान आदि क्रिया करने के बाद, साधक अपने आसन पर बैठकर सामने चौकी पर पीला या लाल रंग का वस्त्र बिछाये और लक्ष्मी गणेश का मूर्ति या चित्र स्थापित करे ।
३) संभव हो तो सरसो का तेल का दिया या गाय के घी का दिया जलाये ।
४) अब गणेश स्मरण करे – १ माला गणेश मंत्र की यथा – ॐ गं गणपतये नमः ॥
५) अब गुरु मंत्र की १ माला करे – यथा – ॐ श्री गुरुवे नमः ॥
६) अब विष्णु स्मरण करे – यथा – ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ( १ माला जाप )
७) अब ५ बार लक्ष्मी बीज : “श्रीम” इस मंत्र का जाप करे ।
८) अब कनकधारा स्तोत्र का पाठ करे ।
९) इस कनकधारा स्तोत्र के अंत में इसके रचयिता आदि गुरु श्री शंकराचार्य जी कहते है , जो मनुष्य इस स्तोत्र का प्रतिदिन ३ बार पाठ करता है , वह कुबेर सामान जीवन प्राप्त करता है । ( यहाँ कुबेर सामान जीवन मतलब – जितनी आवशकता हो उतनी पूर्ती माँ लक्ष्मी जरूर करती है । )
१०) यदि दिन में ३ बार kanakdhara stotra पाठ संभव न हो तो १ ही बैठक में ३ बार स्तोत्र का पाठ करले ।
११) नवरात्री जैसे सिद्ध पर्व पर इस स्तोत्र की प्रतिदिन ११ बार पाठ करना चाहिए ।
१२) यदि कभी ऐसा समय आये जहा बहार किसी दूसरे स्थान पर जाप करना पड़े या घर से बाहर जाते समय दीपक, अगर- बत्ती जलाना संभव न हो तो भी इससे कोई बाधा नहीं होती क्योंकि यह कनकधारा स्तोत्र मंत्र सिद्ध होने के कारण स्वतः ही चैतन्य रहता है ।
कनकधारा स्तोत्रम् Shri Kanakdhara Stotra in Hindi with Lyrics
अङ्गं हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती भृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम् ।
अङ्गीकृताखिलविभूतिरपाङ्गलीला माङ्गल्यदास्तु मम मङ्गलदेवतायाः ॥१॥
अर्थ – जैसे भ्रमरी अधखिले कुसुमों से अलंकृत तमाल के पेड़ का आश्रय लेती है, उसी प्रकार जो श्रीहरि के रोमांच से सुशोभित श्रीअंगों पर निरंतर पड़ती रहती है तथा जिसमें सम्पूर्ण ऐश्वर्य का निवास है, वह सम्पूर्ण मंगलों की अधिष्ठात्री देवी भगवती महालक्ष्मी की कटाक्षलीला मेरे लिए मंगलदायिनी हो।
मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि ।
माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले या सा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः ॥२॥
अर्थ – जैसे भ्रमरी महान कमलदल पर आती-जाती या मँडराती रहती है, उसी प्रकार जो मुरशत्रु श्रीहरि के मुखारविंद की ओर बारंबार प्रेमपूर्वक जाती और लज्जा के कारण लौट आती है, वह समुद्रकन्या लक्ष्मी की मनोहर मुग्ध दृष्टिमाला मुझे धन-सम्पत्ति प्रदान करे।
विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षम् आनन्दहेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि ।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्धम्_इन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः ॥३॥
अर्थ – जो सम्पूर्ण देवताओं के अधिपति इन्द्र के पद का वैभव-विलास देने में समर्थ है, मुरारि श्रीहरि को भी अधिकाधिक आनन्द प्रदान करनेवाली है तथा जो नीलकमल के भीतरी भाग के समान मनोहर जान पड़ती है, वह लक्ष्मीजी के अधखुले नयनों की दृष्टि क्षणभर के लिए मुझपर भी थोड़ी सी अवश्य पड़े।
आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दम्_आनन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम् ।
आकेकरस्थितकनीनिकपक्ष्मनेत्रंभूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः ॥४॥
अर्थ – शेषशायी भगवान विष्णु की धर्मपत्नी श्रीलक्ष्मीजी का वह नेत्र हमें ऐश्वर्य प्रदान करनेवाला हो, जिसकी पुतली तथा भौं प्रेमवश हो अधखुले, किंतु साथ ही निर्निमेष नयनों से देखनेवाले आनन्दकन्द श्रीमुकुन्द को अपने निकट पाकर कुछ तिरछी हो जाती हैं।
बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या हारावलीव हरिनीलमयी विभाति ।
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः ॥५॥
अर्थ – जो भगवान मधुसूदन के कौस्तुभमणि मण्डित वक्षस्थल में इन्द्रनीलमयी हारावली सी सुशोभित होती है तथा उनके भी मन में प्रेम का संचार करनेवाली है, वह कमलकुंजवासिनी कमला की कटाक्षमाला मेरा कल्याण करे।
कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर् धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव ।
मातुः समस्तजगतां महनीयमूर्तिर् भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः ॥६॥
अर्थ – जैसे मेघों की घटा में बिजली चमकती है, उसी प्रकार जो कैटभशत्रु श्रीविष्णु के काली मेघमाला के समान श्यामसुन्दर वक्षस्थल पर प्रकाशित होती हैं, जिन्होंने अपने आविर्भाव से भृगुवंश को आनन्दित किया है तथा जो समस्त लोकों की जननी हैं, उन भगवती लक्ष्मी की पूजनीया मूर्ति मुझे कल्याण प्रदान करे।
प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत्प्रभावान् माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन ।
मय्यापतेत्तदिह मन्थरमीक्षणार्धं मन्दालसं च मकरालयकन्यकायाः ॥७॥
अर्थ – समुद्रकन्या कमला की वह मन्द, अलस, मन्थर और अर्धोन्मीलित दृष्टि, जिसके प्रभाव से कामदेव ने मंगलमय भगवान मधुसूदन के हृदय में प्रथम बार स्थान प्राप्त किया था, यहाँ मुझपर पड़े।
दद्याद् दयानुपवनो द्रविणाम्बुधाराम् अस्मिन्नकिञ्चनविहङ्गशिशौ विषण्णे ।
दुष्कर्मघर्ममपनीय चिराय दूरं नारायणप्रणयिनीनयनाम्बुवाहः ॥८॥
अर्थ – भगवान नारायण की प्रेयसी लक्ष्मी का नेत्ररूपी मेघ दयारूपी अनुकूल पवन से प्रेरित हो दुष्कर्मरूपी घाम को चिरकाल के लिए दूर हटाकर विषाद में पड़े हुए मुझ दीनरूपी चातक पर धनरूपी जलधारा की वृष्टि करे।
इष्टा विशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्र दृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते ।
दृष्टिः प्रहृष्टकमलोदरदीप्तिरिष्टां पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः ॥९॥
अर्थ – विशिष्ट बुद्धिवाले मनुष्य जिनके प्रीतिपात्र होकर उनकी दयादृष्टि के प्रभाव से स्वर्गपद को सहज ही प्राप्त कर लेते हैं, उन्हीं पद्मासना पद्मा की वह विकसित कमल गर्भ के समान कान्तिमती दृष्टि मुझे मनोवांछित पुष्टि प्रदान करे।
गीर्देवतेति गरुडध्वजसुन्दरीति शाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति ।
सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै ॥१०॥
अर्थ – जो सृष्टि-लीला के समय ब्रह्मशक्ति के रूप में स्थित होती हैं, पालन-लीला करते समय वैष्णवी शक्ति के रूप में विराजमान होती हैं तथा प्रलय-लीला के काल में रुद्रशक्ति के रूप में अवस्थित होती हैं, उन त्रिभुवन के एक मात्र गुरु भगवान नारायण की नित्ययौवना प्रेयसी श्रीलक्ष्मीजी को नमस्कार है।
श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै रत्यै नमोऽस्तु रमणीयगुणार्णवायै ।
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्रनिकेतनायै पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तमवल्लभायै ॥११॥
अर्थ – हे माता ! शुभ कर्मों का फल देनेवाली श्रुति के रूप में आपको प्रणाम है। रमणीय गुणों की सिन्धुरूप रति के रूप में आपको नमस्कार है। कमलवन में निवास करनेवाली शक्तिस्वरूपा लक्ष्मी को नमस्कार है तथा पुरुषोत्तमप्रिया पुष्टि को नमस्कार है।
नमोऽस्तु नालीकनिभाननायै नमोऽस्तु दुग्धोदधिजन्मभूत्यै ।
नमोऽस्तु सोमामृतसोदरायै नमोऽस्तु नारायणवल्लभायै ॥१२॥
अर्थ – कमलवदना कमला को नमस्कार है। क्षीरसिन्धु सम्भूता श्रीदेवी को नमस्कार है। चन्द्रमा और सुधा की सगी बहन को नमस्कार है। भगवान नारायण की वल्लभा को नमस्कार है।
सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि साम्राज्यदानविभवानि सरोरुहाक्षि ।
त्वद्वन्दनानि दुरिताहरणोद्यतानि मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये ॥१३॥
अर्थ – कमलसदृश नेत्रोंवाली माननीया माँ ! आपके चरणों में की हुई वन्दना सम्पत्ति प्रदान करनेवाली, सम्पूर्ण इन्द्रियों को आनन्द देनेवाली, साम्राज्य देने में समर्थ और सारे पापों को हर लेने के लिए सर्वथा उद्यत है। मुझे आपकी चरणवन्दना का शुभ अवसर सदा प्राप्त होता रहे।
यत्कटाक्षसमुपासनाविधिः सेवकस्य सकलार्थसम्पदः ।
संतनोति वचनाङ्गमानसैस् त्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे ॥१४॥
अर्थ – जिनके कृपाकटाक्ष के लिए की हुई उपासना उपासक के लिए सम्पूर्ण मनोरथों और सम्पत्तियों का विस्तार करती है, श्रीहरि की हृदयेश्वरी उन्हीं आप लक्ष्मीदेवी का मैं मन, वाणी और शरीर से भजन करता हूँ।
सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतमांशुकगन्धमाल्यशोभे ।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥१५॥
अर्थ – भगवति हरिप्रिये ! तुम कमलवन में निवास करनेवाली हो, तुम्हारे हाथों में लीलाकमल सुशोभित है। तुम अत्यन्त उज्ज्वल वस्त्र, गन्ध और माला आदि से शोभा पा रही हो। तुम्हारी झाँकी बड़ी मनोरम है। त्रिभुवन का ऐश्वर्य प्रदान करनेवाली देवि ! मुझपर प्रसन्न हो जाओ।
दिग्घस्तिभिः कनककुम्भमुखावसृष्ट स्वर्वाहिनीविमलचारुजलप्लुताङ्गीम् ।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष लोकाधिनाथगृहिणीममृताब्धिपुत्रीम् ॥१६॥
अर्थ – दिग्गजों द्वारा सुवर्ण कलश के मुख से गिराये गये आकाशगंगा के निर्मल एवं मनोहर जल से जिनके श्रीअंगों का अभिषेक किया जाता है, सम्पूर्ण लोकों के अधीश्वर भगवान विष्णु की गृहिणी और क्षीरसागर की पुत्री उन जगज्जननी लक्ष्मी को मैं प्रातःकाल प्रणाम करता हूँ।
कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं करुणापूरतरङ्गितैरपाङ्गैः ।
अवलोकय मामकिञ्चनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः ॥१७॥
अर्थ – कमलनयन केशव की कमनीय कामिनी कमले ! मैं अकिंचन (दीनहीन) मनुष्यों में अग्रगण्य हूँ, अतएव तुम्हारी कृपा का स्वाभाविक पात्र हूँ। तुम उमड़ती हुई करुणा की बाढ़ की तरल तरंगों के समान कटाक्षों द्वारा मेरी ओर देखो।
स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमूभिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम् ।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते भुवि बुधभाविताशयाः ॥१८॥
अर्थ – जो लोग इन स्तुतियों द्वारा प्रतिदिन वेदत्रयीस्वरूपा त्रिभुवनजननी भगवती लक्ष्मी की स्तुति करते हैं, वे इस भूतल पर महान गुणवान और अत्यन्त सौभाग्यशाली होते हैं तथा विद्वान पुरुष भी उनके मनोभाव को जानने के लिए उत्सुक रहते हैं।
स्वर्णधारा स्तोत्रं यच्छङ्कराचार्य – निर्मितम् । मिसन्ध्यं य कुबेरसमो भवेत् ॥ १९ ॥
॥ इस प्रकार श्रीमत् शंकराचार्य रचित कनकधारा स्तोत्र जो मनुष्य त्रिसंध्या में पाठ करता है वह कुबेर के सामान जीवन व्वयतीत करता है और इस प्रकार यह कनकधारा स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ ॥ १९ ॥
माँ महालक्ष्मी से इस लेख द्वारा प्रार्थना है – आप सभी को अपने जीवन में सुख शांति प्राप्त हो।
महालक्ष्मी दर्शन अभिलाषी ,
Kanakdhara Stotra in English
Anggam Hareh Pulaka-Bhuussannam-Aashrayantii
Bhrngga-Anggan[a-I]eva Mukula-[A]abharannam Tamaalam |
Anggii-Krta-Akhila-Vibhuutir-Apaangga-Liilaa
Maanggalya-Daa-[A]stu Mama Manggala-Devataayaah ||1||
Mugdhaa Muhur-Vidadhatii Vadane Muraareh
Prema-Trapaa-Prannihitaani Gataagataani |
Maalaa Drshor-Madhukarii-[I]va Mahotpale Yaa
Saa Me Shriyam Dishatu Saagara-Sambhavaayaah ||2||
Vishva-Amare[a-I]ndra-Pada-Vibhrama-Daana-Dakssam_
Aananda-Hetur-Adhikam Mura-Vidvisso-[A]pi |
Iissan-Nissiidatu Mayi Kssannam-Iikssanna-Ardham_
Indiivaro[a-U]dara-Sahodaram-Indiraayaah ||3||
Aamiilita-Akssam-Adhigamya Mudaa Mukundam_
Aananda-Kandam-Animessam-Anangga-Tantram |
Aakekara-Sthita-Kaniinika-Pakssma-Netram
Bhuutyai Bhaven-Mama Bhujangga-Shaya-Angganaayaah ||4||
Baahv[u]-Antare Madhu-Jitah Shrita-Kaustubhe Yaa
Haaraavali-Iva Hariniilamayii Vibhaati |
Kaama-Pradaa Bhagavato-[A]pi Kattaakssa-Maalaa
Kalyaannam-Aavahatu Me Kamala-[A]alayaayaah ||5||
Kaala-Ambu-Da-Ali-Lalito[a-U]rasi Kaittabha-Arer_
Dhaaraadhare Sphurati Yaa Taddid-Anggane[a-I]va |
Maatuh Samasta-Jagataam Mahaniiya-Muurtir_
Bhadraanni Me Dishatu Bhaargava-Nandanaayaah ||6||
Praaptam Padam Prathamatah Kila Yat-Prabhaavaan
Maanggalya-Bhaaji Madhu-Maathini Manmathena |
Mayyaa-Patet-Tad-Iha Mantharam-Iikssanna-Ardham
Manda-Alasam Ca Makaraalaya-Kanyakaayaah ||7||
Dadyaad Daya-Anupavano Dravinna-Ambu-Dhaaraam_
Asminn-Akin.cana-Vihangga-Shishau Vissannnne |
Dusskarma-Gharmam-Apaniiya Ciraaya Duuram
Naaraayanna-Prannayinii-Nayana-Ambu-Vaahah ||8||
Issttaa Vishisstta-Mata-Yo-[A]pi Yayaa Dayaa-[Aa]rdra_
Drssttyaa Trivissttapa-Padam Sulabham Labhante |
Drssttih Prahrsstta-Kamalo[a-U]dara-Diipti-Rissttaam
Pussttim Krssiisstta Mama Pusskara-Vissttaraayaah ||9||
Giir-Devate[aa-I]ti Garudda-Dhvaja-Sundarii-[I]ti
Shaakambharii-[I]ti Shashi-Shekhara-Vallabhe[a-I]ti |
Srsstti-Sthiti-Pralaya-Kelissu Samsthitaayai
Tasyai Namas-Tri-Bhuvanai[a-E]ka-Guros-Tarunnyai ||10||
Shrutyai Namo-[A]stu Shubha-Karma-Phala-Prasuutyai
Ratyai Namo-[A]stu Ramanniiya-Gunna-Arnnavaayai |
Shaktyai Namo-[A]stu Shata-Patra-Niketanaayai
Pussttyai Namo-[A]stu Purussottama-Vallabhaayai ||11||
Namo-[A]stu Naaliika-Nibha-[A]ananaayai
Namo-[A]stu Dugdho[a-U]dadhi-Janma-Bhuutyai |
Namo-[A]stu Soma-Amrta-Sodaraayai
Namo-[A]stu Naaraayanna-Vallabhaayai ||12||
Sampat-Karaanni Sakale[a-I]ndriya-Nandanaani
Saamraajya-Daana-Vibhavaani Saroruha-Akssi |
Tvad-Vandanaani Duritaa-Haranno[a-U]dyataani
Maam-Eva Maatar-Anisham Kalayantu Maanye ||13||
Yat-Kattaakssa-Samupaasanaa-Vidhih
Sevakasya Sakala-Artha-Sampadah |
Samtanoti Vacana-Angga-Maanasais_
Tvaam Muraari-Hrdaye[a-I]shvariim Bhaje ||14||
Sarasija-Nilaye Saroja-Haste
Dhavalatama-Amshuka-Gandha-Maalya-Shobhe |
Bhagavati Hari-Vallabhe Manojnye
Tri-Bhuvana-Bhuuti-Kari Prasiida Mahyam ||15||
Dig-[G]hastibhih Kanaka-Kumbha-Mukha-Avasrsstta_
Svar-Vaahinii-Vimala-Caaru-Jala-Pluta-Anggiim |
Praatar-Namaami Jagataam Jananiim-Ashessa_
Loka-Adhinaatha-Grhinniim-Amrta-Abdhi-Putriim ||16||
Kamale Kamala-Akssa-Vallabhe
Tvam Karunnaa-Puura-Taranggitair-Apaanggaih |
Avalokaya Maam-Akin.canaanaam
Prathamam Paatram-Akrtrimam Dayaayaah ||17||
Stuvanti Ye Stutibhir-Amuubhir-Anvaham
Trayiimayiim Tri-Bhuvana-Maataram Ramaam |
Gunna-Adhikaa Gurutara-Bhaagya-Bhaagino
Bhavanti Te Bhuvi Budha-Bhaavitaa-Shayaah ||18||
Swardhara Stotra, Yaha Shankarcharya Nirmitam Trisandhyam Ya KuberSamo Bhaveth ||19||
Iti Shri Kanakdhara Stotra Samaptham
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