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श्रीगणपतिका स्वरूप एवं उसका रहस्य Shri Ganapati Ka Swaroopa Aur Rahasya

श्रीगणपतिका स्वरूप एवं उसका रहस्य (लेखक—पं० श्रीगोविन्ददास ‘संत’ धर्मशास्त्री, पुराणतीर्थ )

पिछले हफ्ते में अदभुत गणेश भक्त श्री पं० श्रीगोविन्ददास ‘संत’ धर्मशास्त्री, पुराणतीर्थ ने – भगवान् श्री गणेश जी के स्वरुप के बारे एक लेख जो गीता प्रेस गोरखपुर के “श्री गणेश अंक” से लेकर यहाँ प्रकाशित किया था । आशा है श्री  गणेश  भक्त इसका लाभ लेकर जीवन कृतार्थ करेंगे ।

Ganapati

Shri Ganapati Swaroop in Vedas

प्रत्येक मांगलिक कार्यमें श्रीगणपतिका प्रथम | एवं गाम्भीर्य का प्राधान्य है। वह अन्य पशुओं की भाँति पूजन होता है। पूजन की थाली में मंगलस्वरूप श्रीगणपतिका खाद्य-पदार्थको देख पूँछ हिलाकर अथवा खूँटा उखाड़कर स्वस्तिक-चिह्न बनाकर उसके ओर-छोर अर्थात् अगल- नहीं टूट पड़ता; किंतु धीरता एवं गम्भीरताके साथ उसे बगलमें दो-दो खड़ी रेखाएँ बना देते हैं। स्वस्तिक ग्रहण करता है । उसके कान बड़े होते हैं। 

इसी प्रकार चिह्न श्रीगणपतिका स्वरूप है और दो-दो रेखाएँ साधकको भी चाहिये कि वह सुन सबकी ले, पर श्रीगणपतिकी भार्यास्वरूपा सिद्धि – बुद्धि एवं पुत्रस्वरूप उसके ऊपर धीरता एवं गम्भीरताके साथ विचार करे । लाभ और क्षेम हैं। 

Ganapti

Shri Ganapati Beej Mantra

श्री गणपति का बीज मन्त्र ‘गं’ है- ऐसे व्यक्ति ही कार्यक्षेत्रमें आगे बढ़कर सफलता प्राप्त अनुस्वार युक्त ‘ग’, अर्थात् ‘गं’ इसी ‘गं’ बीज मन्त्र की कर सकते हैं। 

चार संख्याको मिलाकर एक कर देनेसे स्वस्तिक चिह्न बन जाता है। इस चिह्नमें चार बीजमन्त्रोंका संयुक्त होना श्रीगणपतिकी जन्मतिथि चतुर्थीका द्योतक है । 

Shri Ganapati Janam Tithi

चतुर्थी तिथिमें जन्म लेनेका तात्पर्य यह है कि श्रीगणपति बुद्धिप्रदाता हैं; अतः जाग्रत्, स्वप्न, सुषुप्ति और तुरीय–इन चार अवस्थाओंमें चौथी अवस्था ही ज्ञानावस्था है। 

इस कारण बुद्धि (ज्ञान) – प्रदान करनेवाले श्रीगणपतिका जन्म चतुर्थी तिथिमें होना युक्तिसंगत ही है । श्रीगणपतिका पूजन सिद्धि, बुद्धि, लाभ और क्षेम प्रदान करता है, यही भाव इस चिह्नके आसपास दो- दो खड़ी रेखाओंका है।

इस प्रकार मंगलमूर्ति श्रीगणेशस्वरूपका प्रत्येक अंग किसी-न-किसी विशेषता (रहस्य) – को लिये हुए है। 

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Shri Ganapati Spiritual Meaning in Ganesh Idol

उनका बौना (ठिंगना)रूप इस बातका द्योतक है कि जो व्यक्ति अपने कार्यक्षेत्रमें श्रीगणपतिका पूजन कर कार्य प्रारम्भ करता है, उसे श्रीगणपतिके इस ठिंगने कदसे यह शिक्षा ग्रहण करनी चाहिये कि समाजसेवी पुरुष सरलता, नम्रता आदि सद्गुणोंके साथ अपने-आपको छोटा (लघु)मानता हुआ चले, जिससे उसके अंदर अभिमानके अंकुर उत्पन्न न हों। ऐसा व्यक्ति ही अपने कार्यमें निर्विघ्नतापूर्वक सफलता प्राप्त कर सकता है।

श्रीगणपति ‘लम्बोदर’ हैं । उनकी आराधनासे हमें यह शिक्षा मिलती है कि मानवका पेट मोटा होना चाहिये अर्थात् वह सबकी भली-बुरी सुनकर अपने पेटमें रख ले; इधर-उधर प्रकाशित न करे । समय आनेपर ही यदि आवश्यक हो तो उसका उपयोग करे।

 

Shri Ganapati Murti depicts the Unity in Diversity

श्रीगणपतिका ‘एकदन्त’ एकता (संगठन) – का उपदेश दे रहा है। लोकमें ऐसी कहावत भी प्रसिद्ध है कि अमुक व्यक्तियोंमें बड़ी एकता है – ‘एक दाँतसे रोटी खाते हैं।’ इस प्रकार श्रीगणपतिकी आराधना हमें एकताकी शिक्षा दे रही है । 

Shri Ganapati and Modak 

यही अभिप्राय उनको मोदक (लड्डू)-के भोग लगानेका है। अलग-अलग बिखरी हुई बूँदी के समुदायको एकत्र करके मोदकके रूपमें भोग लगाया जाता है। व्यक्तियों का सुसंगठित समाज जितना कार्य कर सकता है, उतना एक व्यक्तिसे नहीं हो पाता । श्रीगणपतिका मुख-मोदक हमें यही शिक्षा देता है।

Ganapati

Connection of Shri Ganapati and Sindoor Tilak

श्रीगणपतिको सिन्दूर धारण करानेका यह अभिप्राय है कि सिन्दूर सौभाग्यसूचक एवं मांगलिक द्रव्य है। अतः मंगलमूर्ति श्री गणेश को मांगलिक द्रव्य समर्पित करना युक्तिसंगत ही है ।

दूर्वां चढ़ाने का तात्पर्य यह है— गजको दूर्वा प्रिय है। दूसरे, दूर्वामें नम्रता एवं सरलता भी है।

श्री गुरु नानक साहब कहते हैं— नानक नन्हें बनि रहो, जैसी नन्ही दूब। सबै घास जरि जायगी, दूब खूब -की- खूब ॥

श्रीगणपति ‘गजेन्द्रवदन’ हैं। भगवान् शंकरने कुपित होकर इनका मस्तक काट दिया और फिर प्रसन्न होनेपर हाथीका मस्तक जोड़ दिया, ऐसा श्रीगणपतिकी आराधना करनेवाले भक्तजनोंके ऐतिहासिक वर्णन है।

हाथीका मस्तक लगानेका तात्पर्य यही है कि श्रीगणपति बुद्धिप्रद हैं। मस्तक ही बुद्धि कुलकी दूर्वाकी भाँति अभिवृद्धि होकर उन्हें स्थायी (विचारशक्ति)-का प्रधान केन्द्र है। हाथीमें बुद्धि, धैर्य, सुख-सौभाग्यकी सम्प्राप्ति होती है।

Shri Ganapti Vahan Mushak ( Mouse as Vehicle of Shri Ganesh ji )

श्रीगणपतिके चूहेकी सवारी क्यों ? इसका तात्पर्य | है । वे स्वभाववश चूहेकी भाँति उसे काट डालने की चेष्टा यह है कि मूषक का स्वभाव है – वस्तुको काट देनेका । 

प्रबल बुद्धिका साम्राज्य आते ही कुतर्क दब जाता वह यह नहीं देखता कि वस्तु नयी है या पुरानी है। श्रीगणपति बुद्धिप्रद हैं; अत: उन्होंने कुतर्क रूपी मूषक को कारण ही उन्हें काट डालता है । 

इसी प्रकार कुतर्की जन वाहनरूपसे अपने नीचे दबा रखा है। इस प्रकार हमें भी यह नहीं सोचते कि प्रसंग कितना सुन्दर और हितकर | श्रीगणपतिके प्रत्येक श्रीअंगसे सुन्दर शिक्षा मिलती है।

श्री गणपति जी दर्शन अभिलाषी,

नीरव हींगु